Chanakya Niti: समाज में मान प्रतिष्ठा प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत आवश्यक है। लेकिन यह मान प्रतिष्ठा तभी बरकरार रहेगी ,जब पुरुष अपनी कुछ बातों को गुप्त रखेंगे चाणक्य अनुसार खासकर पुरुषों को कुछ बातें हमेशा अपने दोस्तों से, अपनी पत्नी से , अपने समाज से गुप्त रखना ही उनके लिए लाभकारी होता है। क्योंकि chanakya niti का कहना है कि पुरुषों के लिए कुछ चीजे गुप्त रखना एक सफल इंसान की निशानी है।
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य जिनको हम विष्णु गुप्त, और कौटिल्य के नाम से भी जानते हैं । आचार्य चाणक चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु थे उन्हें महान ज्ञानी और विद्वान पंडित माना जाता है । आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र की रचना की है, जो Chanakya Niti के नाम से जानी जाती है। यह चाणक्य नीतियां आपको अपने जीवन में कुछ भी हासिल करने में मदद करती हैं ।
यदि आप इन चाणक्य नीतियों के बताए गए सिद्धांत पर चलते हो तो आपको जीवन में कोई नहीं हरा सकता । आप अपने जीवन में बड़ा सा बड़ा लक्ष्य हासिल कर सकते हो आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में ऐसी कई बातें बताइ है जो व्यक्ति का सही मार्गदर्शन करती हैं।
Chanakya Niti in hindi: आचार्य Chanakya एक महान कूटनीतिक, राजनीतिक और अर्थशास्त्री कहा जाता है ।उन्होंने अपने जीवन के अनुभव और ज्ञान के आधार पर जिन चीजों का अनुसरण किया , उसे उन्होंने अपने नीतियों के माध्यम से आम जनमानस के बीच साझा कर दिया ।
जिससे व्यक्ति खुशी ,संपन्न ,प्रतिष्ठित जीवन बिता सके, और सफल हो सके चाणक्य ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना ज्ञान दिया है चाणक्य नीतियों को जीवन में अपना कर आप भी तरक्की की सीढ़ियां चढ़ सकते हैं। खुशी जीवन जी सकते हैं समाज में मान सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन कैसे तो चलिए जानते हैं Chanakya Niti
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Chanakya Niti: आपातकाल में पत्नी और धन में से किसको बचाएं?
Chanakya Niti कहती है ,किसी कष्ट अथवा आपातकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करना बहुत ज्यादा आवश्यक होता है । लेकिन धन खर्च करके भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए परंतु स्त्रियों और धन से भी आवश्यक है ,आपके स्वयं की रक्षा करना। क्योंकि जब तक आप स्वयं की रक्षा नहीं कर पाओगे ना तो आप स्त्री की रक्षा कर पाओगे और ना ही धन की इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं की रक्षा करना सीखे , तभी वह धन और अपनी स्त्री की रक्षा कर पाएगा।
Chanakya Niti: कहते हैं कि मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि कुछ भी करने से पहले उसे इस बात का ज्ञान हो कि वह कार्य करने योग्य है या नहीं । उसका परिणाम क्या होगा पुण्य कार्य और पाप कर्म क्या है ? श्रेष्ठ मनुष्य ही वेद आदि धर्म शास्त्रों को पढ़कर भले बुरे का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं,
और यह बात जान लेना भी आवश्यक है कि धर्म और अधर्म क्या है इसके निर्णय में प्रथम दृष्टि में धर्म की व्याख्या के अनुसार किसी के प्राण लेना अपराध है और धर्म भी परंतु लोकाचार और नीति शास्त्र के अनुसार विशेष परिस्थितियों में ऐसा किया जाना धर्म के विरोध नहीं माना जाता, पापी का वध और अपराधी को दंड देना इसी श्रेणी में आते हैं । श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध की प्रेरणा दी उसे इसी विशेष संदर्भ में धर्म कहा जाता है।
Chanakaya niti के अनुसार,कुल्टा स्त्री का पालन पोषण करना मुर्खता की निशानी है
गुरु चाणक्य कहते हैं मूर्ख शिष्य को उपदेश देना दुष्ट व्यभिचारी स्त्री का पालन पोषण करना धन के नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्टों का सामना करना पड़ता है । क्योंकि मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होगा अपितु सज्जन और बुद्धिमान लोग उसे हानि ही उठते हैं। उदाहरण के लिए अगर देखा जाए वया और बंदर की कहानी पाठकों को याद होगी मूर्ख बंदर को घर बनाने की सलाह देकर बया को अपने घोंसले से ही हाथ धोना पड़ा था।
इसी प्रकार दुष्ट को दुष्ट और कुलटा स्त्री का पालन पोषण करने से सज्जन और बुद्धिमान व्यक्तियों को दुख ही प्राप्त होगा दुखी व्यक्तियों से व्यवहार रखने से चाणक का तात्पर्य है कि जो व्यक्ति अनेक रोगों से पीड़ित है, और जिनका धन नष्ट हो चुका है ,ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध रखना बुद्धिमान मनुष्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है । अनेक रोगों का तात्पर्य संक्रामक रोग से बहुत से लोग संक्रामक रोगों से ग्रस्त होते हैं । उनकी संगति से रोगी होने का अंदेशा रहता है जिन लोगों का धन नष्ट हो चुका हो आता जो दिवालिया हो गए हैं, उन पर एक का एक विश्वास करना कठिन होता है।
जहां आजीविका के साधन नहीं वह स्थान त्याग देना chnakaya niti है ।
चाणक्य नीति रहती है कि जिस देश में आदर्श सम्मान नहीं और ना ही आजीविका का कोई साधन है, जहां कोई बंधु बांदा रिश्तेदार भी नहीं या फिर किसी प्रकार की विद्या और गुणों की प्राप्ति की संभावना भी नहीं ,ऐसे देश को छोड़ ही देना चाहिए। ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं है ।
किसी अन्य देश अथवा किसी अन्य स्थान पर जाने का एक प्रयोजन यह होता है कि ,वहां जाकर कोई नई बात नई विधा रोजगार और नया गुण सीख सकेंगे परंतु जहां इनमें से किसी भी बात की संभावना न हो ऐसे देश के स्थान को तुरंत त्याग देना चाहिए।
Chanakya niti के अनुसार पत्नी की वास्तविकता का पता कब चलता है?
गुरु चाणक्य कहते हैं,यदि हम यदि हमको काम करवाना है तो नौकर chakron की दुख आने पर बंधु बंधावों की कष्ट आने पर मित्रों की तथा धन नष्ट होने पर अपनी पत्नी की वास्तविकता का ज्ञान होता है । चाणक कहते हैं कि जब सेवक को किसी कार्य पर नियुक्त किया जाएगा तभी पता चलेगा कि वह कितना योग है।
वह इस काम को कर पाएगा या नहीं इसी प्रकार जब व्यक्ति किसी मुसीबत में फंस जाता है तो उसे समय भाई बंधु और रिश्तेदारों की परीक्षा होती है मित्र की पहचान भी विपत्ति के समय ही होती है । इसी प्रकार धनहीन होने पर पत्नी की वास्तविकता का पता चलता है कि उसका प्रेम धन के कारण था या वास्तविक।
विवाह किस तरह की स्त्री से करना चाइए।
चाणक्य नीति के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुई कुरूप अर्थात सौंदर्य कन्या से भी विवाह कर ले परंतु नीचे कूल में उत्पन्न हुई सुंदर कन्या से विवाह न करें । वैसे विवाह अपने सामान कुल में ही करना चाहिए आचार्य चाणक ने यह बहुत सुंदर बात कही है शादी विवाह के लिए सुंदर कन्या देखी जाती है। सुंदरता के कारण लोग ना कन्या के गुणों को देखते हैं ना उसके कुल को ऐसी कन्या से विवाह करना सदा ही दुखदाई होता है।
क्योंकि नीचे कूल की कन्या के संस्कार भी नीचे होंगे उसके सोने बातचीत करने उठने बैठने का स्तर भी निम्न होगा जबकि उच्च श्रेष्ठ कुल की कन्या का आचरण अपने कुल के अनुसार होगा भले ही वह कन्या कुरूप व सौंदर्य विहीन हो पर जो भी कार्य करेगी उसे अपने कुल का मान ही बढ़ेगा।
और नीचे कुल की कन्या तो अपने व्यवहार से परिवार की प्रतिष्ठा ही बिगड़ेगी पैसे भी बेवफा साद अपने सामान कल में ही करना उचित होता है अपने से नीचे कुंड में नहीं यहां कल से तात्पर्य धन संपदा से नहीं परिवार के चरित्र से है।
जहर में भी यदि अमृत हो तो उसे पी लेना चाहिए। क्यों?
Chanakya Niti कहती है की जहर में भी यदि अमृत हो तो उसे पी लेना चाहिए। अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओं में भी यदि सोना अथवा मूलवान वस्तु पड़ी हूं ,तो वह भी उठा लेने की योग्य होती हैं । यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या कला अथवा गुण है तो उसे सीखने में कोई हानि नहीं है। इसी प्रकार कल में उत्पन्न अच्छे गुना से युक्त स्त्री रूपी रत्न को ग्रहण कर लेना चाहिए यदि किसी नीच व्यक्ति के पास कोई उत्तम गुण अथवा विद्या है
तो विद्या उससे सीख लेनी चाहिए अर्थात व्यक्ति को सदैव इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि जहां से उसे किसी अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो किसी अच्छी शिक्षा की प्राप्ति हो अच्छी गुना और कलाओं को सीखने का अवसर प्राप्त हो उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए विश्व में अमृत और गंदगी में सोने से तात्पर्य नीचे के पास गुण से है।
Chanakya Niti :स्त्रियों में कामवासना पुरुषों से 8 गुना ज्यादा होती है।
चाणक्य नीति के अनुसार पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार अर्थात भोजन दोगुना होता है ।उनकी बुद्धि चौगुनी और साहस छे गुना और कामवासना 8 गुना होती है। भोजन की आवश्यकता स्त्री को पुरुष की अपेक्षा इसलिए ज्यादा है ,क्योंकि उसे पुरुष की तुलना में शारीरिक कार्य करना पड़ता है। यदि उसे प्राचीन संदर्भ में भी देखा जाए तो उसे समय स्त्रियों को घर में कई ऐसे छोटे-मोटे काम करने होते थे जिनमें ऊर्जा का खर्च ज्यादा होता था।
आज के परिवेश में भी स्थिति लगभग वही है शारीरिक बनावट उसमें होने वाले परिवर्तन और प्रजनन आदि ऐसे कार्य हैं, जिसमें नष्ट हुई ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए स्त्री को अतिरिक्त पौष्टिकता की आवश्यकता होती है । स्थिति जानकारी न होने के कारण बल्कि व्यवहार में उसके विपरीत आचरण होने के कारण बालिकाओं और स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा कुपोषण का शिकार होना पड़ता है।
जहां सम्मान ना हो Chanakya Niti के अनुसार वहां नहीं जाना चाहिए
Chanakya Niti कहती हैं कि व्यक्ति को उस स्थान पर रहना चाहिए। जहां उसका सम्मान हो जहां पर उसके भाई बाधो आजीविका के साधन हो इसी संबंध में आगे कहते हैं कि जहां धनवान वेद शास्त्रों को जानने वाले विद्वान ब्राह्मण राजा अथवा शासन व्यवस्था नदी और वेद आदि ना हो वहां भी नहीं रहना चाहिए नौकरी की कार्य कुशलता का पता तभी चलता है ।
जब उन्हें कोई कार्य करने के लिए दिया जाता है अपने संबंधी और मित्रों की परीक्षा उसे समय होती है या संपर्क कोई आपत्ति आती है ग्रस्त का सबसे बड़ा शहर उसके स्त्री होती है परंतु स्त्री की वास्तविकता भी इस समय समझ में आती है जब व्यक्ति पूरी तरह से धनहीन हो जाता है।
मनुष्य को चाहिए की भी अधिक लालच में ना पड़े उसे वही कार्य करना चाहिए इसके संबंध में उसे पूरा ज्ञान हो जिस कार्य के संबंध में उसे ज्ञान ना हो उसे करने से हानि हो सकती है जिस कार्य का अनुभव न हो उससे संबंधित निर्णय लेना कठिन होगा निर्णय यदि ले लिया जाए तो उस की स्थिति मनको डगमगाती रहती है ।ऐसा निर्णय कभी भी सही नहीं होता।
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